Dasharna

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Dasharna (दशार्ण) was an ancient Indian janapada in eastern Malwa region between the Dhasan River and the Betwa River. Their descendants Dashpuria (दशपुरिया) Jats are found in Madhya Pradesh. They fought Mahabharata War in Pandava's side

Variants

Jat clans

Jat gotras originated from Dasharna are:

Dasharna (दशार्ण)[1]Dashae/Dashahe (दशाहे)[2] is a Gotra of Jats. Dashae (दशाहे) Dasharn (दशार्ण) gotra of Jats originated from Dasharna (दशार्ण) people of Dashpur.

Dashpuria (दशपुरिया) Dashpuriya (दसपुरिया) Daspuria (दसपुरिया) Daspuriya (दशपुरिया) gotra of Jats have originated from Dasharna (दशार्ण) people. Dashpur was the capital of Dasharn people, so they were known as Daspuriya (दशपुरिया). Dashpur at present is called Mandsaur in Madhya Pradesh. [3] Daspuriya (दशपुरिया) gotra Jats are found in Madhya Pradesh at Dhupghat (Narsinghpur), and Bhopal.

Mention by Panini

Dasharna (दशार्ण) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [4]

History

Dasharnas were the people of Dashpur of Mahabharata and Ramayana periods. Dashpur is present Mandsaur.[5] Dasharna people are also recorded settled near Surasena country, whose capital was at Mathura. [6]

जाट इतिहास

ठाकुर देशराज[7] ने महाभारत कालीन प्रजातंत्री समूहों का उल्लेख किया है जिनका निशान इस समय जाटों में पाया जाता है....दशार्ण लोग सूरसैन देश के समीप बसते थे, ऐसा महाभारत मीमांसा के वर्णन से पता चलता है। सूरसेन देश की राजधानी मथुरा थी। किन्तु दशार्ण लोगों का पता दसपुर अथवा मन्दसौर के आस-पास [p.140]: चलता है। इस तरह से दशार्ण मालवे के निवासी थे और अब उनके वंशज जाटों में दशपुरिया नाम से प्रसिद्ध हैं, तथा यू० पी० में पाए जाते हैं।

गजाग्रपद

विजयेन्द्र कुमार माथुर[8] ने लेख किया है ...गजाग्रपद (AS, p.273) की गणना जैन साहित्य के अति प्राचीन आगम ग्रंथ 'एकादशअंगादि' में उल्लिखित जैन तीर्थों में है। इसकी स्थिति दशार्ण कूट में बताई गई है, जो संस्कृत में प्रसिद्ध दशार्ण देश (बुंदेलखंड का भाग) हो सकता है। (दे. दशार्ण)

दशार्ण

विजयेन्द्र कुमार माथुर[9] ने लेख किया है.... 1. दशार्ण (AS, p.429) बुंदेलखंड, मध्य प्रदेश का धसान नदी से सिंचित प्रदेश है। धसान नदी भोपाल क्षेत्र की पर्वतमाला से निकल कर सागर ज़िले में बहती हुई झांसी के निकट बेतवा नदी में मिल जाती है। दशार्ण का अर्थ है- 'दस' (या अनेक) नदियों वाला क्षेत्र। 'धसान', दशार्ण का ही अपभ्रंश है। महाभारत में दशार्ण को भीमसेन द्वारा विजित किये जाने का उल्लेख है-'तत: स गंडकाञ्छूरो विदेहान् भग्तर्षभ:, विजित्याल्पेन कालेन दशार्णनजयत प्रभु:। तत्र दशार्ण को राजा सुधर्मालोमहर्षणम्, कृतवान् भीमसेनेन महद् युद्धं निरायुधम्' (महाभारत, सभापर्व 29, 4-5.) महाभारत काल में इस क्षेत्र पर उस समय सुधर्मा का शासन था। महाभारत में सुधर्मा के पूर्वगामी दशार्ण नरेश हिरण्यवर्मा का उल्लेख है। हिरण्यवर्मा की कन्या का विवाह द्रुपद के पुत्र शिखंडी के साथ हुआ था। (हिरण्यवर्मेति नृपोऽसौ दाशार्णिक: स्मृत:, स च प्रादान्महीपाल: कन्यां तस्मै शिखंडिने- महाभारत, उद्योगपर्व 199, 10.) महाभारत के पश्चात् दशार्ण का उल्लेख बौद्ध जातकों तथा कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र' में मिलता है। उस समय विदिशा दशार्ण की राजधानी हुआ करती थी।

कालिदास ने 'मेघदूत' (पूर्वमेघ 25) में दशार्ण का सुंदर वर्णन करते हुए इस देश के बरसात में फूलने-फलने वाले जामुन के कुंजों तथा इस ऋतु में कुछ दिन यहाँ ठहर जाने वाले यायावर हंसों का वर्णन किया है- 'त्वय्यासन्ने फलपरिणतिश्यामजंबूवनान्तास्संपत्स्यन्ते कतिपयदिन स्थायिहंसा दशार्णा:।'

2. दशार्ण (AS, p.430) - धसान नदी का प्राचीन नाम.

दशार्ण का इतिहास

ठाकुर देशराज[10] ने लिखा है ....दशार्ण - दशार्ण और दशार्ह लोग मंदसौर और उज्जैन के आसपास रहते थे। असल में 10 कुलों ने मिलाकर जो जाति राष्ट्र कायम किया था उसकी राजधानी दशपुर अथवा मंदसौर थी। जाटों में आजकल यह लोग दसपुरिया और दशार्ह कहलाते हैं। मंदसौर का प्रसिद्ध राजा यशोधर्मन इन्हीं दस खानदानों में से बरिक गोत का जाट नरेश था। उसका वर्णन आगे के प्रश्नों में दिया जा रहा है।

दशार्ण-दसपुरिया: दलीप सिंह अहलावत[11] लिखते हैं: यह जाटवंश प्राचीन समय से है। इस वंश का देश व राज्य रामायणकाल में भी था। सुग्रीव ने सीता जी की खोज के लिए वारों को दक्षिण दिशा में दशार्ण, विदर्भ आदि देशों में जाने का आदेश दिया (वा० रा० किष्किन्धाकाण्ड सर्ग 41वां)। महाभारतकाल में भी इनका राज्य था। इसके प्रमाण निम्न प्रकार से हैं -

पाण्डवों की दिग्विजय के अवसर पर पूर्व दिशा में भीमसेन ने विदेह को जीतकर दशार्ण देश को जीत लिया (महाभारत सभापर्व 29वां अध्याय)। नकुल ने पश्चिम दिशा के देशों में दशार्ण को जीत लिया (महाभारत सभापर्व 32वां अध्याय)। इससे ज्ञात होता है कि इन लोगों के दो जनपद अलग-अलग थे। विराटपर्व में लिखा है कि मत्स्य जनपद के उत्तर में दशार्ण देश था। दशार्ण नरेश ने राजसूय यज्ञ में युधिष्ठिर को उपहार दिये (महाभारत सभापर्व 51वां अध्याय)।

महाभारत युद्ध में दशार्ण वीर योद्धा पाण्डवों की ओर से (भीष्मपर्व अध्याय 49वां) और कौरवों की ओर होकर (भीष्मपर्व अध्याय 51वां) लड़े थे। इससे मालूम होता है कि इनके अलग-अलग दो राज्य तथा दल थे। ‘दशार्ण’ लोग मन्दसौर और उज्जैन के आस-पास रहते थे। असल में दस कुलों (वंशों) ने मिलकर जो जातिराष्ट्र स्थापित किया था उसकी राजधानी दसपुर अथवा मन्दसौर थी। जाटों में आजकल ये दसपुरिया और दशाह कहलाते हैं। मन्दसौर का प्रसिद्ध जाट राजा यशोधर्मा इन्हीं दस वंशों में से विर्क गोत्र का था। (इसका वर्णन मालवा में जाट राज्य अध्याह में किया जायेगा)। (जाट इतिहास उत्पत्ति और गौरव खण्ड पृ० 99 लेखक ठा० देशराज)।

इस वंश के जाट मध्यप्रदेश एवं यू० पी० में बसे हुए हैं।

इतिहासकार स्वामी ओमानन्द सरस्वती लिखते हैं -

एक प्रचलित किंवदन्ति है कि ब्रज से द्वारका को जाने के लिये हरि अर्थात् कृष्ण के यान का जाने का यही निर्दिष्ट मार्ग था, अतः यह भू-भाग हरियाणा कहलाया । इसी से मिलती-जुलती एक अन्योक्ति भी है कि कौरवों और पाण्डवों के युद्ध में श्रीकृष्ण जब सम्मिलित होने के लिए आये तो सर्वप्रथम इसी प्रदेश में ठहरे थे । उनकी सेना भी इधर ही एकत्र थी । इसलिये हरि-कृष्ण का आना, इससे यह प्रदेश हरि-आना (हरियाना) कहलाया । (बालमुकुन्द स्मारक ग्रन्थ, पृष्ठ १)

समीक्षा - योगिराज श्रीकृष्ण को भी पौराणिक भाईयों ने विष्णु का अवतार माना है, अतः विष्णु के नाम हरि से इन्हें भी विभूषित किया गया । श्रीकृष्ण जी महाराज की जन्मभूमि मथुरा भी हरियाणे में है और इनकी कर्मभूमि इन्द्रप्रस्थ तथा कुरुक्षेत्र भी इसी प्रदेश में हैं । इनके महाभारत के समय ठहरने का स्थान भी हरयाणा था तथा ब्रज से द्वारका जाने का मार्ग भी उनका यहीं से था । अतः इस प्रदेश का नाम उनके 'हरि' नाम के कारण हरियाणा पड़ गया । यह कल्पना भी कारण हो सकती है, किन्तु इससे अधिक प्रमाणित बात यह है कि जहाँ उनकी कर्मभूमि और जन्मभूमि दोनों ही इस प्रदेश में थीं, वहाँ उन्होंने इस प्रदेश को जीतकर अपनी विजय पताका इस पर फहराई थी तो इसी कारण इसका नाम हरियाणा भी हो गया । महाभारत सभापर्व में उनकी जीत का निम्नलिखित प्रमाण है –

नकुलस्य तु वक्ष्यामि कर्माणि विजयं तथा ।
वासुदेव - जितामाशा यथासवजयत प्रभुः ॥
(महा० सभापर्व ३२ अध्याय)

मैं नकुल के पराक्रम और विजय का वर्णन करूंगा । शक्तिशाली नकुल जिस प्रकार भगवान् वसुदेव के पुत्र श्रीकृष्ण ने इस पश्‍चिम दिशा को जीता था, उसी प्रकार इस पश्‍चिम दिशा पर नकुल ने विजय पाई ।

महर्षि व्यास ने पश्‍चिम दिशा का जो उल्लेख किया है, उसमें सर्वप्रथम हरयाणे का भाग रोहतक आदि आता है । (निर्याय खांडवप्रस्थात्) वह नकुल खांडवप्रस्थ (इन्द्रप्रस्थ) दिल्ली से पश्‍चिम की ओर चलता है और जहाँ-जहाँ पहुँचता है उसके विषय में लिखा है -

ततो बहुधनं रम्यं गवाढ्यं धनधान्यवत् ।
कार्तिकेयस्य दयितं रोहितकमुपाद्रवत् ॥

वहाँ इन्द्रप्रस्थ से चलकर मार्ग में बहुत धनी, गोबहुल धन ही नहीं, धान्य (अनेक प्रकार के अन्नों) से परिपूरित सुन्दर रमणीय कार्त्तिकेय के प्रिय नगर रोहितक (रोहतक) में जा पहुँचा ।

तत्र युद्धं महच्चासीत् शूरैर्मत्तमयूरकैः ।
मरुभूमिं च कार्त्स्न्येन तथैव बहुधान्यकम्
(महा० सभापर्व अ० ३२)

वहाँ उनका मत्तमयूरक (मयूरध्वज धारी) शूरवीर यौधेयों के साथ घोर संग्राम हुआ । नकुल ने सारी मरुभूमि (मयूरभूमि) और सारे बहुधान्यक (हरयाणा) प्रदेश को जीत लिया ।

शैरीषकं महेत्थं च वशे चक्रे महाद्युति ।
आक्रोश चैव राजर्षिं तेन युद्धमभवन्महत् ॥
तान् दशार्णान् जित्वा स प्रतस्थे पाण्डुनन्दनः ।

इस प्रदेश के मध्य स्थान शैरीषक (सिरसा) और महेत्थं (महम) आदि को उस तेजस्वी नकुल ने जीता । इस प्रकार यौधेयों के दशार्ण - दश दुर्गों को जीत कर वह आगे बढ़ा । यहां आक्रोश के साथ घोर युद्ध हुआ, किन्तु नकुल ने उसे जीत लिया ।

इस प्रकार श्रीकृष्ण जी महाराज ने इस हरयाणा प्रदेश को जो नकुल ने जीता, इसे पहले ही जीत लिया था । इसी अध्याय में पुनः इसकी पुष्टि महाभारत में की है । यथा -

एवं विजित्य नकुलो दिशं वरुणपालिताम् ।
प्रतीचीं वासुदेवेन निर्जितां भरतर्षभ ॥२०॥

इस प्रकार हे भरत श्रेष्ठ ! भगवान् वासुदेव श्रीकृष्ण द्वारा जीती हुई वरुणपालित पश्‍चिम दिशा पर (हरयाणा सहित) विजय पाकर नकुल इन्द्रप्रस्थ को गया । इस प्रकार यह हरयाणा श्रीकृष्ण महाराज की जन्मभूमि, कर्मभूमि और विशेषतया उनका जीता हुआ प्रदेश था । अतः श्रीकृष्ण का नाम विष्णु के नाम (अवतार) हरि मानने के कारण हरियाणा पड़ गया, इस युक्ति में कुछ सार और तथ्य प्रतीत होता है ।[12]

In Mahabharata

Bhisma Parva, Mahabharata/Book VI Chapter 47 describes immeasurable heroes assembled for battle:

"And that mighty bowman, the son of Bharadwaja, endued with great energy, followed him with the Kuntalas, the Dasharnas, and the Magadhas."
तम अन्वयान महेष्वासॊ भारथ्वाजः परतापवान
कुन्तलैशदशार्णैशमागधैशविशां पते Mahabharata (6.47.12)

Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 29 mentions the deeds and triumphs of Nakula and locates Trigartas along with Dasarnas, the Sivis, the Amvashtas, the Malavas, the five tribes of the Karnatas around Rohtak in Haryana as under:

शैरीषकं महेच्छं च वशे चक्रे महाथ्युतिः
शिबींस त्रिगर्तान अम्बष्ठान मालवान पञ्च कर्पटान ।। 6 ।।
Vaisampayana said,--"I shall now recite to you the deeds and triumphs of Nakula, and how that exalted one conquered the direction that had once been subjugated by Vasudeva. The intelligent Nakula, surrounded by a large host, set out from Khandavaprastha for the west, making this earth tremble with the shouts and the leonine roars of the warriors and the deep rattle of chariot wheels. And the hero first assailed the mountainous country called Rohitaka that was dear unto (the celestial generalissimo) Kartikeya and which was delightful and prosperous and full of kine and every kind of wealth and produce. And the encounter the son of Pandu had with the Mattamyurakas of that country was fierce. And the illustrious Nakula after this, subjugated the whole of the desert country and the region known as Sairishaka full of plenty, as also that other one called Mahetta. And the hero had a fierce encounter with the royal sage Akrosa. And the son of Pandu left that part of the country having subjugated the Dasarnas, the Sivis, the Trigartas, the Amvashtas, the Malavas, the five tribes of the Karnatas, and those twice born classes that were called the Madhyamakeyas and Vattadhanas. And making circuitous journey that bull among men then conquered the (Mlechcha) tribes called the Utsava-sanketas."[13]

Bhisma Parva, Mahabharata/Book VI Chapter 46 mentions Dasharna in War:

"And king Drupada, surrounded by a large number of troops, became the head (of that array). And the two kings Kuntibhoja and Saivya became its two eyes. And the ruler of the Dasharnas, and the Prayagas, with the Dasherakas, and the Anupakas, and the Kiratas were placed in its neck".
दाशार्णकाः परयागाशदाश्रेरक गणैः सह
अनूपगाः किराताश च गरीवायां भरतर्षभ Mahabharata (6.46.46)


Distribution

External links

References


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